Vivekananda biography in Hindi 2022 | स्वामी विवेकानंद की जीवनी | स्वामी विवेकानंद के विचार

 Vivekananda Biography in Hindi, Mother, Father  | स्वामी विवेकानंद की जीवनी | स्वामी विवेकानंद के विचार

Vivekananda biography in Hindi | स्वामी विवेकानंद की जीवनी | स्वामी विवेकानंद के विचार
स्वामी विवेकानन्द भारत के जाने माने विद्ववान, धर्मगुरु और एक प्रतिभावान व्यक्ति थे इनका जन्म कलक्त्ता के समृद्ध परिवार में हुआ था इनका असली नाम नरेन्द्र नाथ था इन्होने भारतीय सस्कृति एंव ज्ञान को दुनिया भर में फैलाया इनकेे जन्म दिवस को हम सभी  राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाते है। 1893 में इनके द्वारा शिकागों में दिये गयं भाषण में इन्होने पुरी दुनिया को मत्रमुगद कर दिया।

प्रारम्भिक जीवन, माता, पिता

स्वामी विवेकानंद जन्म कलकत्ता के बडे घराने में हुआ था इनके पिता विश्वनाथ दत्त जाने माने वकील एंव इनके दादा बडेे राजाओं के घरानों से तल्लुक रखते थे स्वामी विवेकान्द इस घराने में 12 जनवरी 1863 में पिता  विश्वनाथ और इनकी माता भुवनेश्वरी देवी के यहा पैदा हुये
 विवेकानंद जी के जीवन में इनकी माता का बेहद प्रभाव पडा जोकि एक हिन्दु धर्म और संस्कृति को मानने वाली एक धार्मिक महिला थी विवेकानंद जी बचपन का नाम वीरेश्वर था जोक इनकी माता द्वारा प्राप्त हुआ था विवेकानद जी बचपन से ही बेहद बुद्विमान एंव नटखट बच्चे थे
 इन्होने अपनी प्रारभिक शिक्षा अपने गॉव में स्थित स्कूल सं की एंव इनकी माता द्वारा इनको रामायण, महाभारत, गीता जैसी कथाओं का ज्ञान प्राप्त हुआ जिससे इनके व्यक्तितिव को एक नई दिशा मिली । 17 साल की उम्र में इन्होने प्रेसीडेसी  कालेज प्रवेेश परीक्षा में  सर्वाधिक अंकों से पास हुये 1884 में इन्होने 12 की परीक्षा पास की  इन्होने बचपन से ही किताबों से काफी प्रेम था

गुरु से ज्ञान प्राति एंव सन्यास

विवेकानन्द जी का  असली नाम नरेन्द्र नाथ  दत्त था उनको विवेकानन्द  नाम उनके गुरु  रामकृष्ण परमहंस द्वारा दिया गया था इस नाम का मतलब जो विवेक का स्वामी है विवेकानंद बचपन से ही बेहद ही जिज्ञासू एंव बुद्विमान व्यक्ति थे जिसके कारण  उन्हे शिक्षकों द्वारा बेहद पसन्द किया जाता था
इन सब खुबियों द्वारा रामकृष्ण परमहंस ने इनको अपना शिष्य गुरु बना लिया । अपने गुरु से इनकों विभिन्न ग्रन्थो का ज्ञान प्राप्त हुआ और इन्होने अपने गुरु की सच्चे मन से सेवा की और अपने गुरु के साथ वो आखरी समय तक रहें । रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद इन्होंने रामकेश संघ की स्थापना की एवं अपना नाम नरेंद्र नाथ से बदलकर श्री स्वामी विवेकानंद रख लिया  जोकिं इनके गुरु द्वारा दिया गया था

स्वामी विवेकानंद के विचार

विवेकानंद जी के जीवन के विचार बेहद ही अनमोल और मत्रंमुग्ध करने वाले थें
1- उठो जागों प्रयत्न करों तब तक ना रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जायें। 
2- अपने आप को दुर्बल समझना सबसे बडा पाप है 
3- दुनिया एक व्यामशाला है जहा पर हम अपने शरीर और मस्तिष्क को मजबूत बनाते है। 
4- जीवन में एक बडी शिक्षा है जिसे हमें जिन्दगी भर सिखना है। 
5- कोई आपको सीखा नही सकता जब तक आप सिखना नही चाहते है। 
6- दिल और दिमाग की टकराव में दिल की सुनों । 
7- एक बार में एक काम करो और उसमें अपनी आत्मा झोक दो। 
8- चिन्तन करों चिन्ता नही चिन्तन से नये विचार का जन्म होगा 
 
 
 

स्वामी विवेकानदं के सामाजिक कार्य

 
स्वामी विवेकानदं अपने जीवन काल में हर समय समाजिक बुराईयों को दुर करने एंव पुरे विश्व को एक बन्धन में बाधनें क कार्य किया इनकी प्रतिभा को लेकर एक बार रविन्द्र नाथ टेैगोर जी ने कहा था – कि अगर आपको भारत के बार में जानना है तो आप स्वामी विवेकानन्द के बारे में जाने जहा आपकों उनके व्यक्तित्व में पुरे भारत की छवि देखने को मिलेगी स्वामी विवेकानन्द जी ने  शिक्षा पर विशेष महत्व दिया
 इन्होने एक बार कहा था की शिक्षा रह इन्सान को ज्ञान के प्रकाश की तरफ ले जाती है। इसके आलावा नारी सशक्तिकरण एंव नारी शिक्षा पर विशेष रुप से बल दिया उनका कहना था की नारी शिक्षा और नारीयों के प्राति व्यापत बुराईयों हमारे समाज के लिए अभिसाप है।
इसके आलावा स्वामी विवेकानन्द राष्ट्रवाद पर घोर बल दिया इन्होने कहा की सभी लोगों के दिलों में राष्ट्र प्रेम की भावना होनी आवश्क है

         स्वामी विवेकानंद जी का शिकागो भाषण

 
1893 में विवेकानंद शिकागो पहुंचे जहां उन्होंने विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया और भारत की मेजबानी की यहां पर दुनिया भर के सभी धर्म गुरु आए थे सभी अपने धर्मों की श्रेष्ठ किताब और उनसे जुड़ी चीजों को शिकागो की जनता के सामने पेश करना था सभी धर्म गुरुओं ने अपने धर्म से जुड़ी बातों को शिकागो की जनता के सामने पेश किया जहां उनका जमकर उपहास उड़ाया गया कई धर्मगुरुओं ने तो वहां पर बोलने से ही मना कर दिया लेकिन जब स्वामी विवेकानंद जी बारी आ ई तुम के मुंह से जो पहला शब्द निकला वह था मेरे अमेरिकी भाई बहनों का स्वागत करता हूं मैं इस सभा में
 
उसके बाद पूरे सभागार में सन्नाटा छा गया और विवेकानंद जी ने 2 मिनट तक लगातार अपनी भाषण को सभी के सामने प्रस्तुत किया जैसे हि उनका भाषण खत्म हुआ पूरे सभागार में तालियों का शोर साफ-साफ सुनाई देने लगा जनता मंत्रमुग्ध होकर उनका भाषण सुना

             विवेकानंद जी द्वारा दिया गया ज्ञान

 
एक बार जब स्वामी विवेकानंद जी अपने ग्रह स्थान पर आराम कर रहे थे तभी उनके पास एक आदमी आया और वह स्वामी जी के समक्ष जाकर उसने कहा स्वामी जी मैं आपका बहुत बड़ा भक्त हूं मेरा पूरा परिवार आपको अपना गुरु मानता है और मैं कई वर्षों से घोर तप कर रहा हूं उसके बाद भी मुझे सफलता नहीं मिल रही है काफी परेशान हूं कृपया मेरे परेशानी का कोई हल दीजिए
जिसके बाद स्वामी जी ने अपने पास में बंधे एक कुत्ते को आदमी द्वारा टाहला के लाने के लिए कहा तब तक वह उसकी परेशानी का हल सोचते हैं
 उसके बाद वो आदमी उस कुत्ते को लेकर तहलाने के लिए चला जाता है जब थोड़ी देर बाद वह आदमी आता है तो उससे विवेकानंद जी पूछते हैं
तुम्हारी सांसे तो ठीक हैं पर यह कुत्ता इतना हाफ क्यों रहा है जिस पर वह आदमी बोलता है स्वामी जी मैं पूरे रास्ते सीधे चल रहा था जबकि यह कुत्ता इधर-उधर हर तरफ भाग रहा था जिस वजह से यह थक कर हफेन लगा इस पर स्वामी जी ने जवाब दिया यही तुम्हारी समस्या का हल है जब तुम किसी एक जगह और किसी एक काम में ध्यान नहीं लगाओगे तब तक तुम्हें सफलता नहीं मिलेगी और तुम थक हार कर निराश हो जाओगे स्वामी जी की यह बात सुनकर उसको अपनी गलती का एहसास हुआ

              स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु

 
स्वामी जी ने अपनी मृत्यु से पूर्व ही बता दिया था कि वह 40 वर्ष से अधिक नहीं जाएंगे जिसके बाद उन्होंने 4 जुलाई 1902  को 39 वर्ष की अल्पायु में ही अपने शरीर का त्याग कर पंचतत्व में विलीन हो गए
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